हरुस श्रद्धाञ्जलि

काल्हि २५ गतेके जनकपुरमे, मिनापद्वारा ‘नेपालक शास्त्रीय संगीतक साधक आ मिथिलाक सपुत स्वर्गीय गुरुदेव कमतक संगीतमय श्रद्धाञ्जलि सभामे भल सुन्नर भल–मनलोकनिक बढि़ञामे बड़ बढि़ञा, देहे–नेहेछोहेके बात, भावसबस’ श्रद्धाञ्जलि अर्पण कएल गेल ।

शास्त्रीय संगीत एहन परम, पुनित उच्च सांस्कृतिक मूल्यक, विशिष्ट विद्या–कला अछि जेकर रचनागत संरक्षण एवं संवद्धनमे निहुछल नैष्ठिक, समर्पित, एकान्त तपोमय साधनाक प्रयोजन होइते अछि आ अर्थ–राजनीतिके हिसाबे एकरा अनुत्पादक झंझटिया मुदा अमूल्य सम्पदा, विद्या–कला मानल जाइछ । अहीदुआरे प्राचीनकालमे ई मन्दिरके तथा मध्यकालमे दरवारमे संरक्षण सम्पोषण पबैत छल आ आब एकर दृश्य–परिदृश्य ओ पहुंच परिवेश बदलिक’ बहुत व्याप्त भ’ गेल छै ।

अपन नेपालमे वत्र्तमानकालमे राजदरवार त’ नै धरि सरकारी अर्थात् नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, नेपाल संगीत नाट्य प्रज्ञा प्रतिष्ठान, मधेश प्रज्ञा प्रतिष्ठान आदि सरिखे आओर बहुते संगीत विषय सम्वद्ध संघ संस्थासब अछि मुदा ओसब चालि–व्यवहारमे ‘नेपाल’क स’ बेसी नेपाली भाषा–साहित्य, नाट्य–संगीतटाक लगाएल, कोताएल, बपौतीकसनके बुझाइत रहैत अछि ।

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दू–ठाम लोक बड़ साधि–समधानि, सुमैरक’ आ मनमे गराक’, आत्मास’ स्वीकारिक’, मैथिली लोकमन्त्र भखैत अछि । एकटा त’ फगुआक धुरखेल दिन धूरा–उड़बै काल— ‘जे जिए, से खेले फाउग ! जे मरे से लेआ लिए !!’ आ दोसर कठियारी संस्कारमे पछमुडि़या पचकठिया फकिक’— ‘राम नाम सत्य हए ! सबके एहे गत हए !!’ एहि श्रद्धाञ्जलि सभामे ई बात सम्यक रुपस, विस्तृत समीक्षा मूल्यांकनक हिसाबे, थोड़ेक झूस हरुस रहलै से हमरो लागल । आ नै मन मखए त’ नजरि पसारिक’ एहि निङहारि लू ! श्रद्धाञ्जलि सभाक बैनरमेके भाषा ‘नेपालक शास्त्रीय संगीतक साधक आ मिथिलाक सपुत स्व. गुरुदेव कमतक संगीतमय श्रद्धाञ्जलि’, अवगाहने लगैछ जे ओ बहुभाषाी बहुजातीय नेपालके शास्त्रीय संगीतक एहन साधक रहथि जिनकर शास्त्रीय संगीत यात्रा वरेण्य आ हुनक अवदान अनमोल रहनि, हँ मैथिलीक सपुत त’ ई रहबे करथि । मार्मिक, ध्यातव्य आ ऐतिहासिक सत्य–तथ्य त’ ई छै जे ओ प्रथमतः मिथिला, मैथिली शास्त्रीय संगीतक अति प्रतिष्ठित, सुविख्यात परम आदरणीय शास्त्रीय संगीतज्ञ रहथि आ अही मूल आ प्रमुख बातके मिनाप अपने आयोजकीय बैनरमे उपस्थापन नहि क’ सकन,े अवमूल्यनसनके झोंच मनमे लागिए जाइछ ।

संगीतमय सभामे बहुते गीत गायन त’ भेलै, धरि गुरुदेव कामतके एक्कौटा गीत नहि बजलै, ततबे नहि शास्त्रीजीके ओहि कार्यक्रममे शास्त्रीय नहि, ‘ललित संगीत’ गाबिके’ पाट बैठैत गेलाह ।

ओहिमे कार्यक्रममे गुरुदेवजीके लाथ लगाक’, हुनक व्यक्तित्व ओ कृतित्वके ओङठाक’, थोड़–बहुत मिथिलाक शास्त्रीय संगीत परम्परा, नेपाल ओ विश्व संगीतक सन्दर्भ परिप्रैक्ष्यमे गुरुदेवजीक अवस्थिति ओ उपस्थितिक संगहि एकर लोकोपयोगी शास्त्रीय संगीतक परिचय तथा मिथिलामे शास्त्रीय संगीत परम्परा विकासक अवस्थिति, चुनैती आ संगीत विद्यालय संगीत महाविद्यालयक मिथिलामे आबश्यकता अपरिहार्यता, ओ एहिके अध्ययन–अनुसंधानपर जे अल्लकालमे एहिपर चर्चा–परिचर्चाकक समयाभावस्था नहि रहने एकरापर आन दिन आन आयोजन होएबापर नियार भजार होइतै, त’ आओर उत्तम आ उपादेय रहितै, से बात सबके मनमे रहैक ।

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परमेश्वर कापरि